योगश्चित्त प्रवृत्ति निरोधः

यह रहा “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” पर एक सुंदर, दार्शनिक व प्रेरणादायक लेख:


योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः – चित्त की यात्रा योग की ओर

“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” — पतंजलि योगदर्शन का यह सूत्र केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि सम्पूर्ण योगशास्त्र का सार है। यह सूत्र स्पष्ट करता है कि योग का वास्तविक उद्देश्य क्या है। जहां आज योग को केवल एक व्यायाम या फिटनेस का साधन मान लिया गया है, वहीं यह सूत्र योग को एक गहन आध्यात्मिक अनुशासन के रूप में प्रस्तुत करता है।

🌿 सूत्र का शाब्दिक अर्थ

  • योग: एकता, जुड़ाव, मिलन। आत्मा का परमात्मा से योग।
  • चित्त: मन, बुद्धि, अहंकार और स्मृति से मिलकर बना अंतःकरण।
  • वृत्तियाँ: चित्त में उत्पन्न होने वाली तरंगें — विचार, कल्पनाएँ, इच्छाएँ, स्मृतियाँ आदि।
  • निरोधः: रोकना, नियंत्रित करना, समाप्त करना।

अर्थात: “योग वह स्थिति है जिसमें चित्त की वृत्तियों का निरोध हो जाता है।”


🧠 चित्त और उसकी वृत्तियाँ

हमारा चित्त दिनभर सक्रिय रहता है — सुख-दुख, इच्छा-अनिच्छा, स्मृतियाँ, कल्पनाएँ, डर, मोह, क्रोध, अहंकार आदि। ये सब चित्त की वृत्तियाँ हैं। जब हम किसी बात पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं, तब ये वृत्तियाँ बाधा बनती हैं। जैसे पानी में लहरें हों तो उसमें चंद्रमा का स्पष्ट प्रतिबिंब नहीं दिखता; वैसे ही चित्त की लहरों में आत्मा का स्वरूप छुपा रहता है।

पातंजलि कहते हैं कि जब चित्त की यह हलचल शांत होती है, तब “स्वरूपावस्थानम्” — आत्मा अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित होती है। यही योग है।


🧘‍♀️ योग का उद्देश्य – आत्मा की ओर वापसी

हमारे भीतर अनंत शांति, आनंद और सत्य विद्यमान हैं। परंतु हमारी चेतना बाहर की वस्तुओं में भटकती रहती है। योग का मार्ग हमें भीतर की यात्रा पर ले जाता है।
“चित्तवृत्ति निरोध” का अर्थ केवल विचारों को रोकना नहीं, बल्कि उन्हें एक दिशा देना है — आत्मा की ओर।

योग:

  • शरीर को स्थिर करता है
  • प्राण को नियंत्रित करता है
  • मन को एकाग्र करता है
  • अंत में आत्मा के अनुभव की ओर ले जाता है

🕉️ योग के आठ अंग – चित्तवृत्ति को शांत करने के साधन

पतंजलि ने चित्तवृत्तियों के निरोध के लिए अष्टांग योग का मार्ग बताया है:

  1. यम – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह (नैतिक नियम)
  2. नियम – शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्राणिधान (आत्मशुद्धि)
  3. आसन – शरीर को स्थिर और शांत बनाना
  4. प्राणायाम – श्वास का नियंत्रण
  5. प्रत्याहार – इंद्रियों को विषयों से हटाकर भीतर लाना
  6. धारणा – एकाग्रता
  7. ध्यान – निरंतर ध्यान
  8. समाधि – आत्मा में पूर्ण लीनता

इन सभी का अंतिम लक्ष्य चित्तवृत्तियों का निरोध है। जब यह निरोध स्थायी हो जाता है, तब आत्मा स्वयं को पहचानती है।


🔥 वृत्तियों के प्रकार

पतंजलि ने चित्तवृत्तियों को पाँच प्रकार बताया:

  1. प्रमाण – ज्ञान की सत्य वृत्ति (प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द)
  2. विपर्यय – भ्रांति या गलत समझ
  3. विकल्प – कल्पना या शब्दों से बनी असत्य धारणा
  4. निद्रा – नींद की अवस्था
  5. स्मृति – स्मरणशक्ति

इन वृत्तियों का निरोध ही योग है। यह नकारात्मक वृत्तियों को दबाने का नहीं, बल्कि चेतना को उनके पार ले जाने का साधन है।


🌺 वर्तमान युग में चित्तवृत्ति निरोध की प्रासंगिकता

आज का युग सूचना और विचलन का युग है। सोशल मीडिया, शोर, प्रतिस्पर्धा और लालसा से मन लगातार अस्थिर है। तनाव, चिंता, अवसाद और अकेलापन आम हो चुके हैं।

ऐसे समय में पतंजलि का यह सूत्र अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है। जब व्यक्ति योग के माध्यम से चित्त की अस्थिरता को नियंत्रित करता है, तब वह:

  • अधिक एकाग्र होता है
  • भीतर से शांत होता है
  • निर्णय लेने में सक्षम होता है
  • आनंद का अनुभव करता है जो बाह्य वस्तुओं पर निर्भर नहीं होता

🌄 योग साधना के लाभ

  • मानसिक शांति और स्पष्टता
  • भावनात्मक संतुलन
  • आत्म-विश्वास की वृद्धि
  • आध्यात्मिक प्रगति
  • आत्मा के दर्शन की दिशा में यात्रा

📖 आध्यात्मिक दृष्टि से योग

“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” केवल मानसिक शांति का सूत्र नहीं, बल्कि मोक्ष की ओर पहला कदम है। यह हमें शरीर से मन, मन से बुद्धि, और बुद्धि से आत्मा की ओर ले जाता है। यह वह विज्ञान है जो आत्मा के अनुभव को प्रत्यक्ष बनाता है।

भगवद्गीता भी यही कहती है —
“योगस्थः कुरु कर्माणि” – योग में स्थित होकर कर्म करो।
अर्थात जब चित्त शांत हो, तभी कर्म भी पवित्र और फलरहित होते हैं।


उपसंहार: चित्त से चैतन्य की ओर

“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” एक आह्वान है — कि हम अपने चित्त की हलचलें पहचानें, उन्हें साधें, और अंततः उस शांत अवस्था में पहुंचें जहां आत्मा स्वयं प्रकट होती है।

यह सूत्र हमें यह सिखाता है कि समाधान बाहर नहीं, भीतर है। शांति कोई वस्तु नहीं, एक अवस्था है — जो तब आती है जब चित्त शांत होता है। यही योग है, यही जीवन का सत्य है।


“योग अभ्यास से केवल तन नहीं बदलता, मन और आत्मा भी रूपांतरित होते हैं।”
अतः आइए — पतंजलि के इस सूत्र को केवल पढ़ें नहीं, जिएं।

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